आस्था के महापर्व छठ के दौरान साफ़-सफाई का विशेष महत्त्व होता है। स्वच्छ्ता के बगैर छठ पूजा की कल्पना ही नहीं की जा सकती। छठव्रती महीनों से स्वच्छ्ता से जुड़े हर छोटे-मोटे जरूरतों की तैयारियाँ पूरी करने में जी जान लगा देते है। अगर गंदे व् बदबूदार पानी में सूर्यदेव की उपासना करनी पड़े, यह छठव्रतियों के लिए किसी दुःस्वप्न से कम नहीं होगा। लेकिन यह सब कुछ आज संभव हुआ, जमशेदपुर के दोमुहानी घाट पर।
जब आज शाम चैती छठ मनाने हज़ारों श्रद्धालु पुरे हर्षउल्लास के साथ दोमुहानी घाट पहुँचे। लेकिन छठ पूजा का उल्लास तब फीका पड़ गया जब घाट पर चारों तरफ जलकुम्भियाँ ही जलकुंभियाँ मिली। फिर सरकार और प्रसाशन की व्यवस्था पर जली-कटी सुनाते श्रद्धालुओं ने खुद घाट की सफाई की कमान संभाली। बहरहाल आनन-फानन में घाट पर फैले कचरों एवम घाट के पास आये जलकुंभियों को दूर तक का रास्ता दिखलाया गया। इसके उपरांत साक्षात भगवान सूर्यदेव का संध्या अर्घ्य व् पूजा-अर्चना संपन्न हुआ।
यह तो थी आज की पूजा की बात, जो वैकल्पिक व्यवस्था के साथ सम्पन्न हुई। कुछ श्रद्धालु तो इन परेशानियो से दो-चार होने का पहले से ही पूर्वानुमान कर घर पर ही कृत्रिम तालाब बनाकर पूजा कर लेते हैं । लेकिन क्या हमारे समाज का यही भविष्य है, हम उपलब्ध संसाधनों का दुरूपयोग करे, बर्बाद करें, और प्रकृति के साथ-साथ सभ्यता को भी नष्ट करते जाये। इसके लिए कौन जिम्मेवार है, सरकार या खुद जनता!!!
इस सवाल का जबाब हर किसी का अलग-अलग होगा। लेकिन एक बात तो तय है, चाहे प्रसाशन हो, या जनता, कोई भी अपनी जिम्मेवारी सही तरीके से नहीं निभा पा रहा, सभी समस्या के समाधान के लिए एक-दूसरे की बात जोहते है, लेकिन आगे कोई नहीं आता, और परिणाम आज दोमुहानी घाट जैसा ही होता है।
तो यह घटना प्रशासन और जनता सबके लिए एक सीख जैसी है। जन सरोकार व् सभ्यता से जुड़े अहम् त्योहारों की बात छोड़ भी दी जाये तो स्वर्णरेखा नदी की साफ-सफाई एक अहम् मुद्दा है, इसको दरकिनार किया जाना जमशेदपुर के अस्तित्व पर ही सवाल उठाता है। श्रद्धालुओं ने भी जिस तरीके से आज घाट की सफाई कर पूजा करने लायक बनाया, यह सीख है की कोई भी आम जिंदगी में सफाई के महत्त्व को दरकिनार ना करे, हम अपने आसपास को जीतना गन्दा करेंगे, उसका खामियाजा हमें ही भुगतना होगा। तो फिर हम तैयार रहे हमें कैसी व्यवस्था चाहिए आज जैसी या… !!!
आलेख : तरुण कुमार (9470381724)